आबादी और संसाधन के बीच हो संतुलन
कुमार सुधीर
अभी भारत की आबादी 121 करोड़ है, 1947 में देश की जनसंख्या करीब 40 करोड़ थी। यानी 64 साल में हमारी आबादी करीब 81 करोड़ बढ़ गई। कहने का मतलब हर साल सवा करोड़ आबादी बढ़ी, लेकिन सोचिए क्या इस दरम्यान हमारे संसाधन बढ़े। क्षेत्रफल वही, जल संसाधन वही, प्राकृतिक संसाधन वही, भूमि उतनी ही। इसका मतलब है कि देश के सीमित संसाधन पर आबादी का बोझ बढ़ता गया। इसलिए हमें अपने संसाधन और अपनी आबादी के बीच एक मजबूत संतुलन बना कर रखना होगा और हमारी वर्तमान पीढ़ी के लिए यही मौजूं संदेश होगा आज विश्व जनसंख्या दिवस पर।
भारत में जनसंख्या वृद्धि के लिए हमारी परंपरा भी जिम्मेदार है। हमारे समाज में वंश चलाने की ललक हमेशा रही है। कृषि प्रधान भारत देश में 'दूधो नहाओ और पूतो फलो' का आशीर्वाद देने की परंपरा सर्वथा रही है। इसके पीछे लोभ छिपा होता कि घर में जितने सदस्य अधिक होंगे, आमदनी उतनी ज्यादा होगी। शायद यही वजह रही कि देश की आबादी बहुत तेजी से बढ़ी। हालांकि इस विश्वास भरे आशीर्वाद में आज कोई दम नहीं रह गया है। समाज शिक्षित हो गया है और उसकी कपाल क्षमता बारीकियों को समझने के लिए अधिक विकसित हो गई है। आज यानी 11 जुलाई को विश्व जनसंख्या दिवस हर साल मनाया जाता है। इसके मनाने के पीछे मानव समाज के लिए हित जुड़ा है। सचेत करना कि बेलगाम आबादी का बढ़ना बेहतर तरक्की के लिए कतई शुभ नहीं है। यह बताना कि वंश चलाने के लिए वारिस की जरूरत है, वंश बेल को बढ़ाने की नहीं। वैश्वीकरण के इस युग में आबादी की महत्ता और बढ़ गई है। दरअसल, किसी भी परिवार, समाज या देश की जनसंख्या उसकी आर्थिक स्थिति पर असर डालती है। धरती सीमित है, आकाश उतना ही है। हवा, वाष्प और पानी भी अपनी अवस्थाएं बदलते रहते हैं, लेकिन हैं सब एक सीमा तक है। इधर, विश्व भी की आबादी में अच्छी-खासी बढ़ोतरी हो रही है। धरती पर कंक्रीट के जंगल खड़े किए जा रहे हैं। फिर भी घर छोटे पड़ रहे हैं। डबल और ट्रिपल स्टोरी बेड बनाकर भी काम नहीं चल पा रहा है। स्कूलों, कालेजों और अस्पतालों की संख्या बढ़ने में समय व साधन लगते हैं। कहा जाए तो संसाधन गणितीय अनुपात में बढ़ते हैं, जबकि इसके इतर जनसंख्या ज्यामितिक अनुपात में अनायास बढ़ती है। इसके कारण अधिसंख्य आबादी को बेहतर आय कमाने लायक बनाने के लिए स्थान कम पड़ता है। बड़े परिवार के सदस्य मजबूरी में कुछ भी करते हैं।
एक अनुमान के अनुसार भारत में जनसंख्या की वृद्धि दर 2051 में 1.44 फीसदी से बढ़कर 164.6 करोड़ तक पहुंच जाएगी। भारत में लगातार बढ़ती जनसंख्या को दो तत्व प्रभावित करते हैं। भारत में जनसंख्या घनत्व में भी लगातार बढ़ोत्तरी हो रही है। आजादी के बाद वर्ष 1961 में देश की जनसंख्या का घनत्व 142 था, जो 1991 में बढ़कर 267 और 2001 में 324 हो गया। संयुक्त राष्ट्र जनगणना ब्यूरो के मुताबिक आज विश्व की जनसंख्या अब 6.77 अरब हो गई है। वहीं, 2040 तक विश्व की जनसंख्या नौ अरब तक पहुंचने की उम्मीद जताई गई है।
अशिक्षा और गरीबी बड़ा कारण
अब पढ़ी-लिखी लड़कियां भी विवाह के उपरांत अमूमन दो बच्चों तक ही अपना परिवार सीमित रखना चाहती हैं। अशिक्षित परिवार में बच्चों की संख्या अब भी पांच-सात तक पहुंच जाए तो कोई आश्चर्य नहीं। गरीबी भी एक कारण इसलिए है कि गरीब परिवार को लगता है कि उसके जितने अधिक बच्चे होंगे, उसकी आमदनी उतनी ज्यादा होगी।
जनसंख्या और रोजगार का सीधा ताल्लुक
जनसंख्या और रोजगार के बीच सीधा और सरल धनात्मक और ऋणात्मक संबंध है। जनसंख्या बढ़ने से रोजगार के ऊपर दबाव और बढ़ेगा। जनसंख्या बढ़ने पर रोजगारों की कमी होगी, बेरोजगारों की दर में इजाफा होगा। आज हम देखते हैं कि स्कूलों, कालेजों, प्रशिक्षण संस्थानों में दाखिला और यहां तक कि अस्पतालों में भर्ती होने के लिए कैसे और किस तरह से 'युद्ध' करना पड़ता है। यह सब आबादी के अनुपात में संसाधनों की कमी का नतीजा है।
एक पहलू यह भी
एक समय भारत में जनसंख्या विस्फोट के कारण आबादी को कोसा जाता था। आज भारत की यही युवा आबादी समूचे विश्व में अपनी पहचान बना रही है। युवा आबादी ने वैश्विक स्तर पर जनसंख्या विस्फोट के दाग को धो दिया है। भारतीय युवाओं ने हर क्षेत्र में प्रगति कर देश में मौजूद निचले स्तर की समस्याओं को सुलझाने में बखूबी योगदान दिया। युवा नेतृत्व आगे आ रहा है। खुद अमेरिका भी भारतीय युवा आबादी के बढ़ते दमखम को देखकर अचंभित और डरा हुआ सा है।
जरा सोचो...
समय रहते जनसंख्या बढ़ोतरी पर रोक लगानी बेहद जरूरी है अन्यथा आने वाला समय तमाम विश्व के लिए अत्यधिक खतरनाक साबित होगा। इसके लिए सरकार ही नहीं, वरन खुद भी सही और सकारात्मक पहल करनी होगी।
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