बुंदेलखण्ड में सूख गई ‘लाल सलाम’ की धरती
वामपंथी विचारधारा से जुड़े लोगों का क्रांतिकारी अभिवादन ‘लाल सलाम’ कभी बुंदेलखण्ड के हर गांव और गरीब की ड्योढ़ी तक सुनाई देता था। करीब तीन दशक तक यह बदहाल इलाका वामपंथियों का गढ़ रहा। ‘धन और धरती बंटकर रहेगी’ के नारे से प्रभावित गरीब-गुरबा इसके प्रबल समर्थक माने जाते थे, लेकिन अब ‘लाल सलाम’ की जगह ‘जय भीम’ ने ले ली है।
बुंदेलखण्ड की धरती पर नब्बे के दशक तक कम्युनिस्ट हावी रहे। लेकिन पिछले विधानसभा चुनाव में बुंदेलखण्ड क्षेत्र की 21 विधानसभा सीटों में से 15 पर बहुजन समाज पार्टी (बसपा) के उम्मीदवारों ने अपना परचम लहराया तो शेष छह सीटें अन्य राजनीतिक दलों के खाते में गई। वामपंथ की पकड़ अब इतनी कमजोर पड़ गई है कि भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (भाकपा) को हर विधानसभा क्षेत्र से चुनाव लड़ाने के लिए प्रत्याशी ढूंढ़ पाना मुश्किल हो रहा है।
पंजाब प्रांत से जिला बदर घोषित कामरेड सरदार ज्वाला सिंह ने बुंदेलखण्ड के बांदा जनपद में वर्ष 1940 में कम्युनिस्ट पार्टी की नींव डाली थी। 1947 के बाद संदिग्ध परिस्थितियों में बांदा जेल में ज्वाला सिंह की मौत हो गई। उस समय भाकपा ने ‘धन और धरती बंटकर रहेगी’ का नारा दिया था। इस वामपंथी नारे से प्रभावित बुंदेलखण्ड के गरीब-गुरबा उनके मुरीद हो गए थे।
वर्ष 1957 में बांदा के नेवादा गांव के अनुसूचित जाति के दुर्जन भाई ने प्रहलाद, रामकृपाल पांडेय, भागवत भाई, मुंशी गंगा सिंह, रामऔतार यादव, झुनूलाल यादव, रामसजीवन सिंह, चंद्रभान आजाद, देवकुमार यादव व प्रभुदयाल निषाद जैसे अपने साथियों के साथ मिलकर मिशन को आगे बढ़ाया। वामपंथ की विचारधारा तब परवान चढ़ी, जब 12 जुलाई 1966 को बांदा कचहरी में कम्युनिस्टों के एक प्रदर्शन के दौरान तत्कालीन पुलिस अधीक्षक निजामुद्दीन आगा शाह खान व जिलाधिकारी टी़ ब्लाह ने पुलिस से गोली चलवा दी। इस गोलीकांड में 19 लोगों की मौत हो गई और 213 घायल हो गए और पुलिस ने 524 लोगों को सरकारी खजाना लूटने के आरोप में जेल भेज दिया था। भाकपा नेता डॉ़ रामचंद्र सरस तो यहां तक कहते हैं, ‘पुलिस ने 50 से अधिक घायल लोगों को जिंदा ट्रकों में भरवा कर यमुना नदी में फेंक दिया था।’
यह गोलीकांड देश में चर्चा का विषय बना और वर्ष 1967 में हुए लोकसभा व विधानसभा के आम चुनाव में जहां बांदा लोकसभा क्षेत्र से पतवन गांव के अशिक्षित जागेश्वर यादव भाकपा के टिकट पर सांसद चुने गए, वहीं कर्वी विधानसभा क्षेत्र से प्रदेश सरकार में गृह मंत्री रहे कांग्रेस प्रत्याशी राधाकृष्ण गोस्वामी को हराकर रामसजीवन सिंह भाकपा के विधायक बने। बांदा, बबेरू व नरैनी विधानसभा क्षेत्र में कम्युनिस्ट प्रत्याशी एक सौ से लेकर दो सौ तक वोटों से कांग्रेस के उम्मीदवारों से चुनाव हारे। इस चुनाव के बाद बांदा कम्युनिस्टों का गढ़ बन गया। नब्बे के दशक तक बुंदेलखण्ड की धरती पर कम्युनिस्ट हावी रहे। इस बीच रामसजीवन तीन बार सांसद, देवकुमार चार बार विधायक, दुर्जन भाई और चंद्रभान आजाद एक-एक बार और डॉ़ सुरेंद्रपाल वर्मा तीन बार विधायक बने। नब्बे के ही दशक में बुंदेलखण्ड में बसपा की आमद हुई और वामपंथी नेताओं ने भी राजनीतिक पाला बदला। परिणाम यह हुआ कि रामसजीवन सिंह व सुरेंद्रपाल वर्मा जैसे कद्दावरों ने ‘लाल सलाम’ को अलविदा कह ‘जय भीम’ को अपना लिया। नतीजन, वामपंथ का ‘लाल सलाम’ बुंदेलखण्ड से गायब हो गया।
सीपीआई के जिला सचिव बिहारीलाल कहते हैं, ‘आज का बसपा समर्थक कल तक कम्युनिस्ट था। आज ‘जय भीम’ कहने वाले ही पहले ‘लाल सलाम’ का अभिवादन किया करते थे।’ वह कहते हैं, ‘इन सबके बावजूद इस इलाके को क्या मिला? लाचारी, बेबसी और भुखमरी से कराहते लोग जहां थे, अब भी वहीं खड़े हैं।’ वामपंथी विचारधारा के एक अधिवक्ता रणवीर सिंह चौहान कहते हैं, ‘बुंदेलखण्ड की जनता क्रांतिकारी कदम बढ़ा रही थी तभी बसपा का उदय होना उनके बीच दीवार बन गया। गरीबों के नाम पर बनी सरकार अमीरों के इशारे पर चल रही है। अब तो हर राजनीतिक दल में पूंजीवाद को बढ़ावा देने की होड़ मची है।’ चित्रकूट जनपद में गोस्वामी तुलसीदास की जन्मस्थली राजापुर के पड़ोसी गांव बिरावर के रहने वाले बुजुर्ग कम्युनिस्ट नेता रामकृपाल पांडेय बताते हैं, ‘तीन दशक तक चित्रकूट, बांदा, हमीरपुर के अलावा झांसी में कामरेड चंदन सिंह और कामरेड ताराचंद जैन की वजह से वामपंथियों की खासी पकड़ थी। कुछ नेताओं के निधन और कुछ के दल बदलने से यहां वामपंथ कमजोर हुआ।’
-जनवाणी डेस्क
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