सावधान! दुनिया हो रही और गर्म
हमें यह सोचने को मजबूर होना चाहिए कि दुनिया का तापमान बढ़ने का सिलसिला जारी है। आर्कटिक सागर में इस साल बर्फ रिकार्ड स्तर तक पिघल गई है। इसके पहले सिर्फ एक बार ऐसा हुआ है। मौसम विज्ञान से संबंधित संयुक्त राष्ट्र के अंतर्राष्ट्रीय संगठन (आईएमओ) की जिनेवा में जारी हालिया रिपोर्ट में यह दावा किया गया है। संगठन ने वर्ष 1850 से ही मौसम का रिकार्ड रखना शुरू कर दिया था। रिकॉर्ड के अनुसार वर्ष 2011 अब तक का दसवां सबसे गर्म वर्ष रहा है।
बताते चलें कि दक्षिण अफ्रीका में मौसम परिवर्तन पर भविष्य की रूपरेखा बनाने के लिए दो सप्ताह का एक सम्मेलन चल रहा है। सम्मेलन में 192 सदस्य किसी नतीजे पर पहुंचने का प्रयास करेंगे। आईएमओ के उपनिदेशक आरडीजे लेंगोसा ने सम्मेलन स्थल के बाहर पत्रकारों से बात करते हुए कहा कि यह साल (2011) पिछले 15 वर्षों में 13वां सबसे गर्म साल रहा है। लेंगोसा का कहना था कि मानवीय गतिविधियां ही इसके लिए जिम्मेदार हैं। उन्होंने कहा कि मौसम परिवर्तन वास्तविक है और हम पूरी दुनिया में हो रहे मौसम परिवर्तन से इसे महसूस कर रहे हैं। ये रिपोर्ट वर्ष के पहले दस महीनों के आधार पर तैयार की गई है।
संस्था ने कहा है कि वर्ष 2011 अति वाले मौसम का वर्ष रहा है। पूर्वी अफ्रीका में जहां सूखे की वजह से दसियों हजार लोग मौत के शिकार हो गए। वहीं, एशिया में बाढ़ का बड़ा प्रकोप रहा। अमेरिका में 14 से अधिक मौसमी त्रासदियों का सामना करना पड़ा, जिससे निपटने के लिए अमेरिका को हर त्रासदी में एक अरब डॉलर से अधिक की राशि खर्च करनी पड़ी।
भविष्य का बैरोमीटर है आर्कटिक
आर्कटिक को वैज्ञानिक सबसे संवेदनशील क्षेत्र मानते हैं। आईएमओ का कहना है कि यह एक तरह से भविष्य का बैरोमीटर है। इस वर्ष आर्कटिक में बर्फ पिघलने का रिकॉर्ड है। इससे पहले सिर्फ एक ही बार इससे अधिक बर्फ पिघली थी। इसके पुख्ता वैज्ञानिक प्रमाण हैं। और यह स्पष्ट रूप से साबित करते हैं कि दुनिया गर्म हो रही है।
बताते चलें कि दक्षिण अफ्रीका में मौसम परिवर्तन पर भविष्य की रूपरेखा बनाने के लिए दो सप्ताह का एक सम्मेलन चल रहा है। सम्मेलन में 192 सदस्य किसी नतीजे पर पहुंचने का प्रयास करेंगे। आईएमओ के उपनिदेशक आरडीजे लेंगोसा ने सम्मेलन स्थल के बाहर पत्रकारों से बात करते हुए कहा कि यह साल (2011) पिछले 15 वर्षों में 13वां सबसे गर्म साल रहा है। लेंगोसा का कहना था कि मानवीय गतिविधियां ही इसके लिए जिम्मेदार हैं। उन्होंने कहा कि मौसम परिवर्तन वास्तविक है और हम पूरी दुनिया में हो रहे मौसम परिवर्तन से इसे महसूस कर रहे हैं। ये रिपोर्ट वर्ष के पहले दस महीनों के आधार पर तैयार की गई है।
संस्था ने कहा है कि वर्ष 2011 अति वाले मौसम का वर्ष रहा है। पूर्वी अफ्रीका में जहां सूखे की वजह से दसियों हजार लोग मौत के शिकार हो गए। वहीं, एशिया में बाढ़ का बड़ा प्रकोप रहा। अमेरिका में 14 से अधिक मौसमी त्रासदियों का सामना करना पड़ा, जिससे निपटने के लिए अमेरिका को हर त्रासदी में एक अरब डॉलर से अधिक की राशि खर्च करनी पड़ी।
भविष्य का बैरोमीटर है आर्कटिक
आर्कटिक को वैज्ञानिक सबसे संवेदनशील क्षेत्र मानते हैं। आईएमओ का कहना है कि यह एक तरह से भविष्य का बैरोमीटर है। इस वर्ष आर्कटिक में बर्फ पिघलने का रिकॉर्ड है। इससे पहले सिर्फ एक ही बार इससे अधिक बर्फ पिघली थी। इसके पुख्ता वैज्ञानिक प्रमाण हैं। और यह स्पष्ट रूप से साबित करते हैं कि दुनिया गर्म हो रही है।
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