गर्व से कहो, हम हैं हिंदुस्तानी
हमें हिंदुस्तानी होने का गर्व महज यूं ही नहीं है। हम भारतीय हर काम और क्षेत्र में अपनी अलहदा पहचान बनाने में बखूबी कामयाब होते रहे हैं और यह सिलसिला आगे भी बरकरार है। अब लगभग डेढ़ साल पहले से दुनिया भर में फैली मंदी को ही ले लीजिए। इसकी चपेट से दुनिया का सबसे ताकतवर देश अमेरिका अब तक नहीं उबर पाया। कंपनियों में छंटनी का ग्रहण लग गया। बावजूद इसके हमारे हिंदुस्तानी बाजार में रोजगार की भरपूर उम्मीदें बरकरार हैं।
हम बात कर रहे हैं सख्त कारोबारी माहौल में भारतीय रोजगार बाजार की, खासकर खुदरा क्षेत्र में नौकरियों की उम्मीदों पर। सच यह है कि भारतीय बाजार में खुदरा क्षेत्र की कंपनियां नई नियुक्तियों को लेकर बेहद उत्साहित हैं। विशेषज्ञ भी मानते हैं कि कंपनियां बड़ी संख्या में नियुक्तियां करने के बजाय सही प्रतिभा पर ध्यान केंद्रित कर रही हैं। मानव संसाधन उपलब्ध कराने वाली फर्म मा फोई रैंडस्टैड के प्रबंध निदेशक एवं सीईओ ई. बालाजी कहते हैं कि भारत अभी तक दुनियाभर में छंटनी के दौर से अछूता है। ज्यादातर छंटनी विकसित देशों में की जा रही है।
बालाजी बताते हैं कि भारतीय रोजगार बाजार नियुक्तियों को लेकर अपेक्षाकृत सतर्क है। अनुमान के मुताबिक देश में हर साल तकरीबन 15 लाख नई नौकरियां पैदा हो रही हैं। हालांकि, यह संख्या रोजगार बाजार में हर साल उतरने वालों की संख्या से काफी कम है। वैश्विक एचआर फर्म हे ग्रुप के मयंक पांडे ने कहा कि नियुक्ति गतिविधियां अब भी जोरों पर हैं, जिसमें खुदरा क्षेत्र में बहुत तेजी से रोजगार के अवसर पैदा होने की संभावना है। कंपनियां सही प्रतिभा हासिल करने को लेकर अधिक गंभीर हैं। कई कंपनियां कम संख्या में प्रभावशाली लोगों को नौकरी पर रखने की संभावना तलाश रही हैं।
विभिन्न पहलुओं पर कर रहीं गौर
विशेषज्ञों ने कहा कि वैश्विक संकट (2007-08) से पहले कंपनियां किसी भी कीमत पर लोगों को नौकरी पर रखने को तैयार थीं, लेकिन अब कंपनियां भर्ती करने से पहले खर्चों सहित विभिन्न कारकों पर गौर कर रही हैं। पांडे ने कहा कि रक्षा, अतिथि आवभगत, परमाणु ऊर्जा और खुदरा जैसे क्षेत्रों में आगामी वर्षों में नियुक्ति गतिविधियों में तेजी आने की संभावना है।
हम बात कर रहे हैं सख्त कारोबारी माहौल में भारतीय रोजगार बाजार की, खासकर खुदरा क्षेत्र में नौकरियों की उम्मीदों पर। सच यह है कि भारतीय बाजार में खुदरा क्षेत्र की कंपनियां नई नियुक्तियों को लेकर बेहद उत्साहित हैं। विशेषज्ञ भी मानते हैं कि कंपनियां बड़ी संख्या में नियुक्तियां करने के बजाय सही प्रतिभा पर ध्यान केंद्रित कर रही हैं। मानव संसाधन उपलब्ध कराने वाली फर्म मा फोई रैंडस्टैड के प्रबंध निदेशक एवं सीईओ ई. बालाजी कहते हैं कि भारत अभी तक दुनियाभर में छंटनी के दौर से अछूता है। ज्यादातर छंटनी विकसित देशों में की जा रही है।
बालाजी बताते हैं कि भारतीय रोजगार बाजार नियुक्तियों को लेकर अपेक्षाकृत सतर्क है। अनुमान के मुताबिक देश में हर साल तकरीबन 15 लाख नई नौकरियां पैदा हो रही हैं। हालांकि, यह संख्या रोजगार बाजार में हर साल उतरने वालों की संख्या से काफी कम है। वैश्विक एचआर फर्म हे ग्रुप के मयंक पांडे ने कहा कि नियुक्ति गतिविधियां अब भी जोरों पर हैं, जिसमें खुदरा क्षेत्र में बहुत तेजी से रोजगार के अवसर पैदा होने की संभावना है। कंपनियां सही प्रतिभा हासिल करने को लेकर अधिक गंभीर हैं। कई कंपनियां कम संख्या में प्रभावशाली लोगों को नौकरी पर रखने की संभावना तलाश रही हैं।
विभिन्न पहलुओं पर कर रहीं गौर
विशेषज्ञों ने कहा कि वैश्विक संकट (2007-08) से पहले कंपनियां किसी भी कीमत पर लोगों को नौकरी पर रखने को तैयार थीं, लेकिन अब कंपनियां भर्ती करने से पहले खर्चों सहित विभिन्न कारकों पर गौर कर रही हैं। पांडे ने कहा कि रक्षा, अतिथि आवभगत, परमाणु ऊर्जा और खुदरा जैसे क्षेत्रों में आगामी वर्षों में नियुक्ति गतिविधियों में तेजी आने की संभावना है।
10 भारतीय संभाल रहे 400 अरब डालर से अधिक का कारोबार
भारतीय मूल के लोगों का बहुराष्ट्रीय कंपनियों में दबदबा तेजी से बढ़ रहा है और 10 भारतीय 400 अरब डालर से अधिक का कारोबार संभाल रहे हैं। सिटीग्रुप, ड्यूश बैंक, पेप्सिको, यूनिलीवर, एडोब, मास्टरकार्ड और मोटोरोला जैसी दिग्गज बहुराष्ट्रीय कंपनियों की कमान भारतीय मूल के लोगों के हाथ में है। टाइम्स पत्रिका ने हाल ही में भारत को सीईओ का अग्रणी निर्यातक बताते हुए कहा कि यह देश वैश्विक आकाओं के लिए एक आदर्श प्रशिक्षण स्थल हो सकता है। विशेषज्ञों का मानना है कि भारतीयों में कठिन परिस्थितियों में काम करने की गजब की क्षमता है। भारतीय मूल के व्यक्ति को प्रबंधन की अहम जिम्मेदारी देने वाले संस्थानों में जर्मनी का सबसे बड़ा बैंक ड्यूश बैंक भी शामिल हो गया है, जिसने अंशु जैन को अपना सह मुख्य कार्याधिकारी नियुक्त किया है।वहीं, भारतीय मूल के विक्रम पंडित ने 111 अरब डालर के सिटीग्रुप को वैश्विक आर्थिक संकट से उबारा। इनके अलावा, इंद्रा नूई, लक्ष्मी मित्तल, अजय बंगा, संजय झा, शांतनु नारायण, राकेश कपूर, हरीश मनवानी और अजीत जैन उन लोगों में शामिल हैं जो बहुराष्ट्रीय कंपनियों का नेतृत्व कर रहे हैं। इन दस लोगों की अगुवाई वाली कंपनियों ने बीते साल 410 अरब डालर मूल्य का कारोबार किया।
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