कारगिल युद्ध : अब भी चुनौतियां कम नहीं
२६ जुलाई को कारगिल विजय दिवस पर विशेष
नुकसान के लिहाज से भारी कीमत चुकाकर कारगिल की जंग में पाकिस्तान के खिलाफ फतह हासिल करने के 12 वर्ष बाद भी विशेषज्ञों का मानना है कि देश की पश्चिमोत्तर सीमा पर चुनौतियां कम नहीं हुई हैं। अब भी ऐसे कई सबक हैं, जिन पर विचार नहीं किया जा रहा है। उन्होंने कहा कि ऐसी कुछ ही खामियों के चलते कश्मीर में आतंकवादी घुसपैठ कर जाते हैं और मुंबई हमले जैसी घटनाएं होती हैं।
भारतीय इतिहास में कारगिल युद्ध को दुश्मन पर साहसी विजय हासिल करने के रूप में याद किया जाएगा, लेकिन जंग के इस इतिहास के साथ ही पड़ोसी देश के विश्वासघात और हमारी सैन्य तैयारियों की खामियों की याद भी जुड़ी रहेगी। दोस्ती की पहल करते हुए फरवरी 1999 में तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी द्वारा लाहौर यात्रा करने के बाद उसी वर्ष मई के महीने में पाकिस्तानी बलों ने नियंत्रण रेखा को पार कर भारत के क्षेत्र में घुसपैठ की थी। बहरहाल, कई दिनों के संघर्ष के बाद जुलाई 1999 में भारतीय थलसेना ने आॅपरेशन विजय के तहत वायुसेना की मदद से घुसपैठियों को खदेड़ दिया और 26 जुलाई को कारगिल विजय दिवस घोषित कर दिया गया।
माना जाता है कि भारत ने इस आपरेशन विजय का जिम्मा प्रत्यक्ष और परोक्ष रूप से करीब दो लाख सैनिकों को सौंपा था। जंग के मुख्य क्षेत्र कारगिल-द्रास सेक्टर में करीब तीस हजार सैनिक मौजूद थे।
इस युद्ध के बाद पाकिस्तान के 357 सैनिक मारे गये लेकिन बताया जाता है कि भारतीय सेना की कार्रवाई में उसके चार हजार सैनिकों की जान गयी। भारतीय सेना के 527 जवान शहीद हुए और 1363 अन्य घायल हुए। विश्व के इतिहास में कारगिल युद्ध दुनिया के सबसे उंचे क्षेत्रों में लडी गयी जंग की घटनाओं में शामिल है।
तीन चरण रहे कारगिल युद्ध के
कारगिल युद्ध के तीन चरण रहे। पहला पाकिस्तानी घुसपैठियों ने श्रीनगर को लेह से जोड़ते राष्ट्रीय राजमार्ग क्रमांक एक पर नियंत्रण स्थापित करने के मकसद से अहम सामरिक स्थानों पर कब्जा कर लिया। दूसरा, भारत ने घुसपैठ का पता लगाया और अपने बलों को तुरंत जवाबी हमले के लिए लामबंद करना शुरू किया तथा तीसरा, भारत और पाकिस्तान के बलों के बीच भीषण संघर्ष हुआ और पड़ोसी देश की शिकस्त हुई।
नुकसान के लिहाज से भारी कीमत चुकाकर कारगिल की जंग में पाकिस्तान के खिलाफ फतह हासिल करने के 12 वर्ष बाद भी विशेषज्ञों का मानना है कि देश की पश्चिमोत्तर सीमा पर चुनौतियां कम नहीं हुई हैं। अब भी ऐसे कई सबक हैं, जिन पर विचार नहीं किया जा रहा है। उन्होंने कहा कि ऐसी कुछ ही खामियों के चलते कश्मीर में आतंकवादी घुसपैठ कर जाते हैं और मुंबई हमले जैसी घटनाएं होती हैं।
भारतीय इतिहास में कारगिल युद्ध को दुश्मन पर साहसी विजय हासिल करने के रूप में याद किया जाएगा, लेकिन जंग के इस इतिहास के साथ ही पड़ोसी देश के विश्वासघात और हमारी सैन्य तैयारियों की खामियों की याद भी जुड़ी रहेगी। दोस्ती की पहल करते हुए फरवरी 1999 में तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी द्वारा लाहौर यात्रा करने के बाद उसी वर्ष मई के महीने में पाकिस्तानी बलों ने नियंत्रण रेखा को पार कर भारत के क्षेत्र में घुसपैठ की थी। बहरहाल, कई दिनों के संघर्ष के बाद जुलाई 1999 में भारतीय थलसेना ने आॅपरेशन विजय के तहत वायुसेना की मदद से घुसपैठियों को खदेड़ दिया और 26 जुलाई को कारगिल विजय दिवस घोषित कर दिया गया।
रक्षा जगत की जानी मानी पत्रिका इंडियन डिफेंस रिव्यू के संपादक भरत वर्मा ने बताया कि जंग से मिले कई सबक पर अब भी अमल होना बाकी है। उन्होंने कहा कि जंग से सबक नहीं लेने का सबसे बड़ा उदाहरण कारगिल समीक्षा समिति की सिफारिशों पर अमल नहीं होना है। हमारे पास अब तक 155 मिमी की तोपें नहीं हैं, रक्षा बलों के बीच एकीकृत सामंजस्य कायम नहीं हुआ है। कारगिल युद्ध के समय पाकिस्तानी सेना नियंत्रण रेखा के जरिये बड़े पैमाने पर घुसपैठ कर रही थी। नियंत्रण रेखा के आसपास बर्फीला दुर्गम क्षेत्र होने के कारण शुरुआती चरण में भारत को घुसपैठ की भनक नहीं लग पाई थी। इस बारे में सवाल पूछे जाने पर वर्मा ने कहा कि हमारा नजरिया तब भी रक्षात्मक था और आज भी ऐसा ही है। जम्मू कश्मीर में हमने सेना की नौ डिवीजन को तैनात किया है, लेकिन हमारी रणनीति सिर्फ किलेबंदी करने की है, आक्रामक तरीके अपनाने की नहीं।
चीन के खिलाफ वर्ष 1962 का युद्ध लड़ने का अनुभव रखने वाले लेफ्टिनेंट कर्नल (सेवानिवृत्त) राजमोहन बाजपेई ने कहा कि पाकिस्तान की चीन से निरंतर बढ़ती नजदीकी को भी हम नजरअंदाज नहीं कर सकते। हमें यह हमेशा ध्यान में रखना होगा कि पश्चिमोत्तर सीमा पर हमारे समक्ष पाकिस्तान और चीन की सेना के रूप में दोहरा खतरा मौजूद है। कश्मीर के कारगिल क्षेत्र में नियंत्रण रेखा के जरिये घुसपैठ करने की साजिश के पीछे तत्कालीन पाकिस्तानी सैन्य प्रमुख परवेज मुशर्रफ को जिम्मेदार माना जाता है।माना जाता है कि भारत ने इस आपरेशन विजय का जिम्मा प्रत्यक्ष और परोक्ष रूप से करीब दो लाख सैनिकों को सौंपा था। जंग के मुख्य क्षेत्र कारगिल-द्रास सेक्टर में करीब तीस हजार सैनिक मौजूद थे।
इस युद्ध के बाद पाकिस्तान के 357 सैनिक मारे गये लेकिन बताया जाता है कि भारतीय सेना की कार्रवाई में उसके चार हजार सैनिकों की जान गयी। भारतीय सेना के 527 जवान शहीद हुए और 1363 अन्य घायल हुए। विश्व के इतिहास में कारगिल युद्ध दुनिया के सबसे उंचे क्षेत्रों में लडी गयी जंग की घटनाओं में शामिल है।
तीन चरण रहे कारगिल युद्ध के
कारगिल युद्ध के तीन चरण रहे। पहला पाकिस्तानी घुसपैठियों ने श्रीनगर को लेह से जोड़ते राष्ट्रीय राजमार्ग क्रमांक एक पर नियंत्रण स्थापित करने के मकसद से अहम सामरिक स्थानों पर कब्जा कर लिया। दूसरा, भारत ने घुसपैठ का पता लगाया और अपने बलों को तुरंत जवाबी हमले के लिए लामबंद करना शुरू किया तथा तीसरा, भारत और पाकिस्तान के बलों के बीच भीषण संघर्ष हुआ और पड़ोसी देश की शिकस्त हुई।
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