मुद्दों का वसंत
सुधीर कुमार
हमारे नेता पहले के मुकाबले अब कहीं अधिक वाक्पटुता के धनी हो चले हैं। गजब की सामर्थ्य आ गई है उनमें बोलने की। वह किसी भी मुद्दे पर बोल सकते हैं। मुद्दा उनके लिए नई बात नहीं है। उनके पास मुद्दों की कोई कमी नहीं है। मुद्दों की भरमार हैं उन पर। मुद्दा नहीं भी हो तो भी मुद्दा बना लेते हैं। बस एक बार मुद्दा मिल जाए फिर वह ‘औरों’ से पानी भरवा लेंगे। वह मुद्दों की उधारी भी चलाते हैं। बस कोई मुद्दा लेने की ख्वाहिश रखता हो। और अगर इसमें उनका हित जुड़ा है तो मुफ्त में भी मुद्दे बांट देंगे। जब कोई उनसे मुद्दा बनवाने आता है तो वह इसकी पूरी मेहनत लेते हैं। संसद में भी वह मुद्दा बना चुके हैं। सवाल पूछकर अपने देश को एक मुद्दा दे चुके हैं वह।
इस समय नेताओं के लिए मुद्दों का वसंत है। उत्तर प्रदेश में चुनाव जो हो रहे हैं। देश में सबसे ज्यादा लोग हैं यहां। यहां के मुद्दे देश पर असर डालते हैं। सब यहां आना चाहते हैं। यहां कई मुद्दे हैं। गली-गली, गांव-गांव, शहर-शहर, सड़क-सड़क, पगडंडी-पगडंडी और यहां तक कि खेत-खेत में भी खाद रूपी मुद्दों की बारिश हो रही है। बिजली-पानी-सड़क नहीं, लैपटॉप की बात हो रही है। हाईटेक जमाना है। किताबों में क्या रखा है! इंटरनेट पर पूरी दुनिया सैर करो। रोजगार का क्या करोगे, बेरोजगारी भत्ता तो दे ही रहे हैं। बेरोजगारी मुद्दा है।
वे मुद्दों पर बोल रहे हैं। मुद्दों में विकास की बात कर रहे हैं। विकास होने से उन्हें मतलब नहीं। वह मुद्दे को मरने नहीं देना चाहते हैं। विकास सार्वभौमिक मुद्दा है। इसे कहीं पर और किसी भी जगह फिट किया जा सकता है। इसलिए यह असरकारी मुद्दा है। पूर्व-अवध-बुंदेलखंड में उन्होंने इस मुद्दे को खूब भुनाया है। अलग इलाके में अलग ‘लोगों’ को निशाना बनाना उनकी फितरत है। एकसाथ सबका सामना करने से नुकसान का डर है। पूर्व से चलकर पश्चिम तक आने में थकावट स्वभाविक है। अब वह यहां मिलकर ‘मिठास’ बांट रहे हैं।
उन्हें भी घोषणापत्र लिखने में कोई दिलचस्पी नहीं है। कागजों पर मुद्दे लिखने में मेहनत लगती है। जुबानी मुद्दों को सुनने और सुनाने वाले दोनों का फायदा है। सुनने वाला मजे से सुनता है। सुनाने वाला मुस्कान देख और मजे से सुनाता है। वह मुद्दों में सबको फंसा रहे हैं। सबके सामने फंसा रहे हैं। वह विरोधियों को कोस रहे हैं। कोसने से सामने वाले को सुकून मिलता है। फिर वह इसे मुद्दा बनाकर कह रहे हैं। कह रहे हैं, सालों तक औरों ने तुम्हें साथ रखा फिर भी साथ जैसा व्यवहार नहीं किया। सही व्यवहार नहीं करना भी एक मुद्दा है।
जनता मालामाल हो रही है मुद्दों से। नेता मालामाल हो रहे हैं जनता ‘से’। मुद्दों में विकास हो रहा है। अलग-अलग विकास दर से नेता दौड़ रहे हैं। असल मुद्दे पीछे रह रहे हैं। मुद्दों से मुद्दों का विकास हो रहा है। मुद्दों का विकास सर्वोपरि है और यह हो रहा है।
हमारे नेता पहले के मुकाबले अब कहीं अधिक वाक्पटुता के धनी हो चले हैं। गजब की सामर्थ्य आ गई है उनमें बोलने की। वह किसी भी मुद्दे पर बोल सकते हैं। मुद्दा उनके लिए नई बात नहीं है। उनके पास मुद्दों की कोई कमी नहीं है। मुद्दों की भरमार हैं उन पर। मुद्दा नहीं भी हो तो भी मुद्दा बना लेते हैं। बस एक बार मुद्दा मिल जाए फिर वह ‘औरों’ से पानी भरवा लेंगे। वह मुद्दों की उधारी भी चलाते हैं। बस कोई मुद्दा लेने की ख्वाहिश रखता हो। और अगर इसमें उनका हित जुड़ा है तो मुफ्त में भी मुद्दे बांट देंगे। जब कोई उनसे मुद्दा बनवाने आता है तो वह इसकी पूरी मेहनत लेते हैं। संसद में भी वह मुद्दा बना चुके हैं। सवाल पूछकर अपने देश को एक मुद्दा दे चुके हैं वह।
इस समय नेताओं के लिए मुद्दों का वसंत है। उत्तर प्रदेश में चुनाव जो हो रहे हैं। देश में सबसे ज्यादा लोग हैं यहां। यहां के मुद्दे देश पर असर डालते हैं। सब यहां आना चाहते हैं। यहां कई मुद्दे हैं। गली-गली, गांव-गांव, शहर-शहर, सड़क-सड़क, पगडंडी-पगडंडी और यहां तक कि खेत-खेत में भी खाद रूपी मुद्दों की बारिश हो रही है। बिजली-पानी-सड़क नहीं, लैपटॉप की बात हो रही है। हाईटेक जमाना है। किताबों में क्या रखा है! इंटरनेट पर पूरी दुनिया सैर करो। रोजगार का क्या करोगे, बेरोजगारी भत्ता तो दे ही रहे हैं। बेरोजगारी मुद्दा है।
वे मुद्दों पर बोल रहे हैं। मुद्दों में विकास की बात कर रहे हैं। विकास होने से उन्हें मतलब नहीं। वह मुद्दे को मरने नहीं देना चाहते हैं। विकास सार्वभौमिक मुद्दा है। इसे कहीं पर और किसी भी जगह फिट किया जा सकता है। इसलिए यह असरकारी मुद्दा है। पूर्व-अवध-बुंदेलखंड में उन्होंने इस मुद्दे को खूब भुनाया है। अलग इलाके में अलग ‘लोगों’ को निशाना बनाना उनकी फितरत है। एकसाथ सबका सामना करने से नुकसान का डर है। पूर्व से चलकर पश्चिम तक आने में थकावट स्वभाविक है। अब वह यहां मिलकर ‘मिठास’ बांट रहे हैं।
उन्हें भी घोषणापत्र लिखने में कोई दिलचस्पी नहीं है। कागजों पर मुद्दे लिखने में मेहनत लगती है। जुबानी मुद्दों को सुनने और सुनाने वाले दोनों का फायदा है। सुनने वाला मजे से सुनता है। सुनाने वाला मुस्कान देख और मजे से सुनाता है। वह मुद्दों में सबको फंसा रहे हैं। सबके सामने फंसा रहे हैं। वह विरोधियों को कोस रहे हैं। कोसने से सामने वाले को सुकून मिलता है। फिर वह इसे मुद्दा बनाकर कह रहे हैं। कह रहे हैं, सालों तक औरों ने तुम्हें साथ रखा फिर भी साथ जैसा व्यवहार नहीं किया। सही व्यवहार नहीं करना भी एक मुद्दा है।
जनता मालामाल हो रही है मुद्दों से। नेता मालामाल हो रहे हैं जनता ‘से’। मुद्दों में विकास हो रहा है। अलग-अलग विकास दर से नेता दौड़ रहे हैं। असल मुद्दे पीछे रह रहे हैं। मुद्दों से मुद्दों का विकास हो रहा है। मुद्दों का विकास सर्वोपरि है और यह हो रहा है।