मंगलवार, 6 मार्च 2012

प्रचंड बहुमत हासिल करके सपा ने लिखी नयी इबारत

उप्र विधानसभा चुनावों में एक्जिट पोल के आकलनों को धता बताते हुए प्रदेश की जनता ने समाजवादी पार्टी को 225 सीटों पर जिता कर स्पष्ट बहुमत प्रदान किया है। एक्जिट पोल के अनुमान तब भी खारिज हो गए जब कांग्रेस बड़ी सफलता हासिल करने में नाकामयाब रही। स्पष्ट बहुमत प्राप्त करने के पश्चात सपा के उप्र अध्यक्ष अखिलेश यादव ने कहा कि बुधवार को मुलायम सिंह राज्यपाल से मिलकर सरकार बनाने का दावा पेश करेंगे। अखिलेश ने यह पहले ही साफ कर दिया है कि पार्टी में मुख्यमंत्री पद को लेकर कोई विवाद नहीं है। मुलायम सिंह यादव ही सर्वसम्मति से हमारे नेता है।

क्या है आंकड़ा
मतगणना के आखिरी चरण में नतीजे कुछ इस तरह है।
सपा - 225, बसपा - 79, भाजपा - 47, कांग्रेस+ - 37, अन्य - 15। इस तरह देखा जाए तो सपा को स्पष्ट बहुमत मिल चुका है और अब उसे किसी अन्य दल के समर्थन की कतई जरूरत नहीं पड़ेगी। राजनीतिक विषेशज्ञ ‌जिस तरह ‌गठबंधन सरकार और त्रिशंकु विधानसभा का आकलन कर रहे थे, उसके बिलकुल उलट उत्तर प्रदेश की विधानसभा का स्वरूप तैयार हो चुका है।

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कहां से लाएंगे 66 हजार करोड़

उत्तर प्रदेश में चुनाव नतीजों से साफ है कि समाजवादी पार्टी सरकार बनाने जा रही है। अब लोगों की नजर सपा के वादों पर हैं, जो उसने चुनाव के दौरान जनता से किए हैं। लेकिन ये वादे कैसे पूरे होंगे, यह साफ नहीं है। सपा ने जो वादे किए हैं, उन्हें निभाने के लिए तकरीबन 66 हजार करोड़ रुपये से भी ज्यादा चाहिए। लेकिन सरकारी खजाने में पैसा ही नहीं है। वित्त वर्ष 2010-11 में राज्य का जीडीपी 5.68 लाख करोड़ रुपये रहा। इस दौरान कुल राजकोषीय घाटा करीब 18,959.66 करोड़ रुपये था जो राज्य के सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) का 2.97 फीसदी था। सपा ने अपने घोषणापत्र में ऐसी किसी नीति का भी जिक्र नहीं किया है, जिसे लागू कर पैसा जुटाया जा सकता है। ऐसे में अर्थव्यवस्था की ऐसी खस्ता हालत में अगर मुलायम सिंह यादव अपने वादे निभाने की सोचते हैं तो उन्हें कर्ज लेना पड़ सकता है जो लगातार खाली हो रहे सरकारी खजाने पर 66 हजार करोड़ का अतिरिक्त बोझ डालेंगे। 
समर्थन मूल्य
सपा ने वादा किया है कि वह अनाज के न्यूनतम समर्थन मूल्य में 50 फीसदी बढ़ोतरी करेगी जिसका मतलब है कि गेहूं जैसी फसल पर न्यूनतम समर्थन मूल्य 22 सौ रुपये प्रति क्विंटल हो जाएगा। इसका मतलब है कि प्रति क्विंटल एक हजार रुपये अतिरिक्त खर्च करना होगा। 2011-12 में प्रदेश सरकार ने 39 लाख टन गेहूं और 23 लाख टन चावल खरीदने की योजना बनाई है। इस हिसाब से नई सरकार को वादा निभाने के लिए 6 हजार करोड़ रुपये हर साल खर्च करने पड़ेंगे।
कर्ज माफी
 मुलायम सिंह ने किसानों का 50 हजार रुपये तक का कर्ज माफ करने का वादा किया है। अगर नई सरकार इस वादे को निभाती है तो इसे एकमुश्त 11 हजार करोड़ रुपये खर्च करने पड़ेंगे।
मुफ्त बिजली
सपा ने किसानों और बुनकरों के लिए फ्री बिजली का वादा किया है। अगर नई सरकार ये वादा निभाती है तो उस पर हर साल करीब 1650 करोड़ रुपये का बोझ पड़ेगा। वित्त वर्ष 2009-10 में यूपी पावर कॉरपोरेशन लिमिटेड को कृषि क्षेत्र से 1532.14 करोड़ बतौर मिला था। अगर सपा की सरकार इस सेक्टर के लिए बिजली मुफ्त करती है तो उसे सीधे-सीधे 1532.14 करोड़ रुपये से हाथ धोना पड़ेगा। वहीं, हथकरघा उद्योग से वित्त वर्ष 2009-10 में यूपी पावर कॉरपोरेशन लिमिटेड को 118 करोड़ रुपये का राजस्व मिला था और सरकार वादा निभाती है तो यह राशि भी नहीं मिलेगी।  
मुफ्त सिंचाई
 यूपी में फसलों की सिंचाई के लिए जरूरी पानी का 77 फीसदी हिस्सा निजी ट्यूब वेल से आता है। बचा हुआ 23 फीसदी पानी नहरों और सरकारी नलकूपों से आता है। आरबीआई के आंकड़ों की मानें तो वर्ष 2010-2011 में यूपी सरकार को सिंचाई से 589 करोड़ रुपये का राजस्व मिला था। अगर इसे माफ किया जाता है तो इसका मतलब होगा नई सरकार को हर साल 589 करोड़ रुपये से हाथ धोना पड़ेगा।
लैपटॉप और टैबलेट
समाजवादी पार्टी ने इंटर पास छात्र-छात्राओं को लैपटॉप और हाईस्कूल पास को टैबलेट देने का ऐलान किया है। 2011 में 22.93 लाख छात्रों ने हाईस्कूल पास किया था और 15.90 लाख छात्रों ने इंटरमीडिएट की परीक्षा उत्तीर्ण की थी। अगर लैपटॉप की कीमत 10 हजार रुपये प्रति लैपटॉप और टैबलेट की कीमत 1 हजार रुपये भी रखी जाए तो 1819 करोड़ रुपये छात्रों को हर साल लैपटॉप और टैबलेट देने पर खर्च करने पड़ेंगे।  
बेरोजगारी भत्ता
सपा ने वादा किया है वे 25 साल से ज्यादा उम्र के बेरोजगारों को हर महीने 1000 रुपये बेरोजगारी भत्ता देंगे। पार्टी ने कहा है कि वे इस भत्ते के लिए 35 साल की अधिकतम उम्र की सीमा को भी बढ़ाएंगे। 2006 में मुलायम सिंह यादव ने 25 से 35 साल तक के स्नातक बेरोजगारों को 500 रुपये हर महीने बेरोजगारी भत्ते के तौर पर दिए थे। उस योजना का सालाना खर्च तब 500 करोड़ था।
अभी यह साफ नहीं है कि यह उम्र कितनी होगी। साथ ही प्रदेश में 35 साल से ज्यादा उम्र के कितने लोग बेरोजगार हैं, इसका भी कोई आंकड़ा नहीं है। लेकिन अगर मुलायम की पिछली सरकार को पैमाना मानें और बेरोजगारों की वही संख्या रखें तो बेरोजगारी भत्ते के तौर पर सरकार को हर साल करीब 1000 करोड़ रुपये खर्च करने होंगे।

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सहयोगी से प्रतिद्वंद्वी बने मुलायम और मायावती

उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव में समाजवादी पार्टी को पूर्ण बहुमत मिलने के साथ ही राजनीति का एक बड़ा चक्र पूरा हो गया। आज से लगभग दो दशक पहले आपस में गठबंधन करके प्रदेश की राजनीति में अपने पैर जमाने वाली सपा और बसपा अब राज्य में एक दूसरे का विकल्प बनकर स्थापित हो चुके हैं। प्रदेश की राजनीति में सपा और बसपा ने अपने पैर जमाने का सिलसिला वर्ष 1993 में गठबंधन करके शुरू किया था और तब 425 सदस्यीय विधानसभा में इस गठबंधन को 176 (सपा 109 और बसपा 67) सीट मिली थीं। कांग्रेस तथा जनता दल के समर्थन से मुलायम सिंह यादव के नेतृत्व में सपा और बसपा ने मिलकर सरकार बनाई थी।
महज डेढ़ साल के भीतर हालांकि 1995 में दो जून को स्टेट गेस्ट हाउस में बसपा नेता मायावती पर कथित सपा समर्थको के हमले जैसी कुख्यात घटना के बाद दोनों दलो का गठबंधन पूरी कड़वाहट के साथ टूट गया। इसके बाद भाजपा तथा अन्य दलों के समर्थन से मायावती पहली बार प्रदेश की मुख्यमंत्री बनीं। बहरहाल उनकी पहली सरकार भाजपा द्वारा समर्थन वापस लेने के बाद महज चार महीने में ही गिर गई थी। वर्ष 1996 में राष्ट्रपति शासन के दौरान विधानसभा का चुनाव हुआ और बसपा ने कांग्रेस के साथ गठबंधन करके चुनाव लड़ा। बसपा 425 में से 299 पर लड़ी और 69 सीटो पर जीत हासिल की, जबकि कांग्रेस कुल 126 सीटो पर लड़ी और 33 पर जीत हासिल की।
भाजपा प्रदेश में 174 सीटों के साथ पहले नंबर पर थी, मगर वह तब सरकार गठन के लिए 213 की संख्या पाने के लिए जरुरी समर्थन का भरोसा नहीं दिला पाई और तत्कालीन राज्यपाल रोमेश भंडारी की संस्तुति पर केंद्र में सत्तारुढ़ एचडी देवगौड़ा की संयुक्त मोर्चे की सरकार ने प्रदेश में राष्ट्रपति शासन को आगे बढ़ा दिया। मुलायम तब केंद्र में रक्षा मंत्री थे। प्रदेश विधानसभा सुसुप्तावस्था में डाल दी गई मगर इसी दौर में इतिहास ने एक और करवट ली। कांग्रेस के साथ मिलकर चुनाव लड़ने वाली बसपा ने उसका हाथ छोड़ दिया और भाजपा से हाथ मिला लिया।
गठबंधन की राजनीति में एक नया पन्ना जुड़ा और दोनो दलों ने छह-छह महीने की पाली बांध कर गठबंधन सरकार बनाने का फैसला किया। मायावती दूसरी बार मुख्यमंत्री बनी, भाजपा के केसरीनाथ त्रिपाठी विधानसभा अध्यक्ष बने। मगर छह महीने बाद जब सत्ता बदल का समय आया तो बसपा ने त्रिपाठी की जगह पर अपना कब्जा मांगा। काफी आगा-पीछा के बाद मायावती ने कल्याण सिंह के लिए मुख्यमंत्री का पद तो छोड़ दिया, मगर बमुश्किल दो महीने बाद ही समर्थन वापस ले लिया। कांग्रेस और बसपा में तोड़फोड़ करके सत्ता में रही भाजपा नीत गठबंधन सरकार में कल्याण सिंह के बाद रामप्रकाश गुप्ता और राजनाथ सिंह भी मुख्यमंत्री बने। मगर वर्ष 2002 में हुए विधानसभा चुनाव में भाजपा को नुकसान उठाना पड़ा और उत्तराखंड के गठन के बाद 403 सदस्यीय विधानसभा में उसे 20 प्रतिशत मतो के साथ 88 सीट पर संतोष करना पड़ा। तब 143 सीटो के साथ सपा सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी, 98 सीटो के साथ बसपा नंबर दो पर थी, जबकि 88 सीटो के साथ भाजपा तीसरे स्थान पर रही। कांग्रेस को 8 प्रतिशत मतो के साथ कुल 25 सीटें ही मिली थीं। 

वर्ष 2002 के विधानसभा चुनाव के बाद फिर एक बार राष्ट्रपति शासन लागू हुआ, मगर दो महीने के भीतर भाजपा और बसपा ने एक बार फिर हाथ मिला लिया। मायावती तीसरी बार मुख्यमंत्री बनी पर डेढ़ साल बाद भाजपा सरकार से अलग हो गई और मायावती सरकार के गिरने के बाद वर्ष 2003 में मुलायम सिंह यादव के नेतृत्व में सपा एवं तब इसके साथ आ गये छोटे दलों की सरकार सत्ता में आई। उस समय केंद्र में अटल बिहारी बाजपेयी के नेतृत्व में राजग की सरकार चल रही थी और यादव सरकार के गठन में भी भाजपा की परोक्ष भूमिका का स्पष्ट भान हुआ।
 वर्ष 2007 के विधानसभा चुनाव तक पहुंचते पहुंचते राजनीति का चक्र पूरा हो चुका था। 1993 में गठबंधन करके प्रदेश की राजनीति में पैर जमाने वाली बसपा और सपा प्रदेश के मुख्य दलों के रूप में उभर चुके थे। राज्य में 16 साल बाद किसी पार्टी (बसपा) को पूर्ण बहुमत मिला और लगभग 26 प्रतिशत वोट और 97 सीट के साथ सपा दूसरे स्थान पर रही, भाजपा 17 प्रतिशत वोट और 51 सीट के साथ तीसरे और कांग्रेस लगभग आठ प्रतिशत मतो के साथ 22 सीट ही जीत सकी। बहरहाल प्रदेश की 16वीं विधानसभा के लिए हुए चुनाव में इतिहास में सर्वाधिक लगभग 60 प्रतिशत मतदान के बीच तमाम कयासबाजियों को झुठलाते हुए बसपा की धुर विरोधी बनकर उभरी मुलायम सिंह यादव की समाजवादी पार्टी ने वर्ष 2007 में मिली पराजय का मुंहतोड़ जवाब दिया और पूर्ण बहुमत हासिल करके सत्ता में शानदार वापसी का जनादेश अर्जित कर लिया।
 इस तरह अब से लगभग दो दशक पहले 1993 में गठबंधन में राजनीति शुरू करने वाली मुलायम और मायावती न सिर्फ एक दूसरे का विकल्प बन गए, बल्कि दोनो ने राष्ट्रीय दलों कांग्रेस और भाजपा को हाशिए पर धकेल दिया।

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22 सालों में यूपी में सबसे बड़ी जीत दर्ज की सपा ने

उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव में समाजवादी पार्टी ने 224 सीटें हासिल कर 22 वर्षों में सभी दलों के मुकाबले सबसे बड़ी जीत हासिल की है। साल 1989 के बाद पिछले 22 वर्षों के दौरान 1991 में भाजपा को 221 सीटें प्राप्त हुई थी। उत्तर प्रदेश में 2007 के विधानसभा चुनाव में मायावती की बसपा को 206 सीटों प्राप्त हुई थी, जबकि 2002 में समाजवादी पार्टी को 143 सीटों को जीत हासिल हुई थी। साल 1996 में भाजपा 174 सीटों पर जीत दर्ज करते हुए सबसे बड़ी पार्टी के रूप में उभर कर सामने आई थी। वहीं 1993 के विधानसभा चुनाव में भाजपा को 177 सीटें प्राप्त हुई थी जबकि सपा को 109 सीटें मिली थी। उत्तर प्रदेश में साल 1989 के विधानसभा चुनाव में जनता दल को 208 सीटों पर जीत हासिल हुई थी। इससे पहले 1985 में कांग्रेस को 269 सीटें मिली थी, जबकि 1980 में कांग्रेस को 309 सीट और 1977 में जनता पार्टी को 352 सीटों पर जीत हासिल हुई थी।

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राष्ट्रीय राजनीति पर गहरा असर डालेंगे ये नतीजे

पांच राज्यों में हुए विधानसभा चुनाव परिणाम का देश की राष्ट्रीय राजनीति पर गंभीर प्रभाव पड़ना लगभग तय है। इस संदर्भ में पहला घमासान 30 मार्च को होने वाले राज्यसभा के द्विवार्षिक चुनाव में देखने को मिलेगा, जिसकी अधिसूचना 12 मार्च को जारी की जाएगी। इसके बाद राजनीतिक दलों का घमासान राष्ट्रपति पद के लिए होने वाले चुनाव में सामने आएगा। वर्तमान राष्ट्रपति प्रतिभा पाटिल का कार्यकाल 24 जुलाई 2012 को समाप्त हो रहा है। संसद सदस्यों के साथ राज्य विधानसभा सदस्यों का राष्ट्रपति चुनाव में अहम योगदान होता है।
राजनीतिक समीकरणों का महत्व इसी साल होने वाले उपराष्ट्रपति पद के चुनाव में भी सामने आएगा। उपराष्ट्रपति हामिद अंसारी का कार्यकाल 10 अगस्त 2012 को समाप्त हो रहा है। पांच राज्यों में इन चुनाव नतीजों का प्रभाव इस वर्ष के अंत में गुजरात एवं हिमाचल प्रदेश में होने वाले विधानसभा चुनाव पर भी पड़ सकता है। दोनों राज्यों में भाजपा सत्ता में है। गुजरात विधानसभा का कार्यकाल 17 जनवरी 2013 को समाप्त हो रहा है जबकि हिमाचल प्रदेश विधानसभा का कार्यकाल 10 जनवरी 2013 को समाप्त हो रहा है।  देश के 15 राज्यों  आंध्रप्रदेश, छत्तीसगढ़, गुजरात, हरियाणा, हिमाचल प्रदेश, बिहार, झारखंड, कर्नाटक, मध्यप्रदेश, महाराष्ट्र, उत्तरप्रदेश, पश्चिम बंगाल, ओडिशा और राजस्थान से राज्यसभा के 58 सदस्यों का कार्यकाल अप्रैल में समाप्त हो रहा है। जिन प्रमुख नेताओं का कार्यकाल समाप्त हो रहा है, उनमें राज्यसभा में विपक्ष के नेता अरुण जेटली, कांग्रेस नेता राशिद अल्वी, राजद के राजनीति प्रसाद, भाजपा के रविशंकर प्रसाद, भाजपा की हेमा मालिनी और राज्यसभा के उपसभापति के रहमान खान प्रमुख हैं। इसके साथ ही शिवसेना के मनोहर जोशी, विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी मंत्री विलासराव देशमुख, संसदीय कार्य राज्य मंत्री राजीव शुक्ला, कांग्रेस प्रवक्ता अभिषेक मनु सिंघवी, भाजपा के कलराज मिश्रा, विनय कटियार, बसपा के नरेश चंद्र अग्रवाल, तृणमूल कांग्रेस के मुकुल राय का भी कार्यकाल समाप्त हो रहा है।

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