मंगलवार, 17 जनवरी 2017

औरत सिर्फ विडंबना नहीं

सुधीर कुमार

इस भौतिकवादी युग में
जहाँ आम आदमी बेदखल है
हर जगह से
ऐसे में आम औरत की
बिसात ही क्या है
वह तो यूँ ही हाशिये पर रही है..

हाँ स्त्री विमर्श का दौर
इन दिनों चला है कहीं- कहीं
पर विडंबना
कि यह विमर्श स्त्री कम
दैहिक अधिक रहता है
मानो स्त्री मात्र देह ही हो..

नाजुक है स्त्री की व्यथा
उबलते हैं इनके जिंदा सवाल
जरूरत है इन्हे परखने की
सूक्ष्म और संवेदनशली नजरिये से
औरत सिर्फ़ एक विडंबना नहीं
इसका दायरा ज्यादा व्यापक और सामाजिक है..

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चुनावी दौरा

सुधीर कुमार

पांच साल के बाद, फिर गांव में दौड़ी कार!
लेकर संग चेलों को, नेताजी पहुंचे द्वार!!
नेता पहुंचे द्वार, खबर सुख-दुख की ले डाली!
हम वोटर के घर में, नहीं है फूटी प्याली!!
हाथ जोड़ नेताजी बोले, रखो हमारा ध्यान!
प्याली की तो बात दूर है, मिलेगा राशन-धान!!
चेलों की मुस्कान देखकर, वोटर कुछ संकुचाया!
पिछली बार भी वादा किया था, कार्ड नहीं बन पाया!!

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